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Channel: नई शायरी
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बात जो थी गौतम-ओ-मूसा में

फ़ासले इस कदर हैं रिश्तों में, घर ख़रीदा हो जैसे क़िश्तों में...

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उसमें गहराई समंदर की कहाँ

चहचहाकर सारे पंछी उड़ गए वार जब सैयाद का खाली गया

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दिल ही दुखाने के लिए आ

किस-किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम , तू मुझसे ख़फ़ा है, तो ज़माने के लिए आ

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मुनव्वर राना की ग़ज़ल

जो हुक्म देता है वो इल्तिजा भी करता है, ये आसमान कहीं पर झुका भी करता है ...

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मुनव्वर राना की ग़ज़ल

कई घर हो गए बरबाद ख़ुद्दारी बचाने में, ज़मीनें बिक गईं सारी ज़मींदारी बचाने में ...

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तुम्हारे जिस्म की खुशबू...

तुम्हारे जिस्म की खुशबू गुलों से आती है, ख़बर तुम्हारी भी अब दूसरों से आती है

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मेरी ग़ज़ल

हार बुरा जब देखे सबका नींद इसकी उड़ जाए, तुम ही कहो फिर चैन से कैसे सोले मेरी ग़ज़ल

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मुनव्वर राना की ग़ज़ल

तू कभी देख तो रोते हुए आकर मुझको , रोकना पड़ता है पलकों से समंदर मुझको ...

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ऐसे सवाल मत करना

बिगड़ते रिश्तों को फिर से बहाल मत करना, जो टूट जाएँ तो उनका ख़याल मत करना।

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छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा

बुझ गई आस, छुप गया तारा थरथराता रहा धुआँ तन्हा ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं जिस्म तन्हा है और जाँ तन्हा ...

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आपसे होगा यक़ीनन मेरा रिश्ता कोई

याद आने लगा एक दोस्त का बरताव मुझे, टूट कर गिर पड़ा जब शाख़ से पत्ता कोई ...

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मिट्‍टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ

कम से कम बच्चों के होंठों की हँसी की ख़ातिर ऐसे मिट्‍टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ

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जो मंजर तलाश करता है....

जो फन में फिक्र के मंजर तलाश करता है वो राहबर भी तो बेहतर तलाश करता है न जाने कौन सा पैकर तलाश करता है फकीर बनके वो घर-घर तलाश करता है ....

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नई शायरी : बादल दरिया पर बरसा हो...

बादल दरिया पर बरसा हो, ये भी तो हो सकता है खेत हमारा सूख रहा हो, ये भी तो हो सकता है मंजिल से वो दूर है अब तक शायद रास्ता भूल गया घबराकर घर लौट रहा हो, ये भी तो हो सकता है...

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नई शायरी : शर्म से मर जाऊंगा...

झूठ का लेकर सहारा जो उबर जाऊंगा मौत आने से नहीं शर्म से मर जाऊंगा सख्त1 जां हो गया तूफान से टकराने पर लोग समझते थे कि तिनकों सा बिखर जाऊंगा...

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अच्‍छाई को बोया कर...

घर से बाहर निकला कर दुनिया को भी देखा कर फसलें काट बुराई की अच्‍छाई को बोया कर ने की डाल के दरिया में अपने आपसे धोखा कर ...

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किससे जाकर बोले मेरी गजल

जैसा मौका देखे वैसा हो ले मेरी गजल वो बातें जो मैं नहीं बोलूं बोले मेरी गजल चांद-सितारे अर्श1 पे जाके जब चाहें ले आएं ऐसे अदीबोशायर2 से क्यूं बोले मेरी गजल आज खुशी का मोती शायद इसको भी मिल जाए गम की...

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होली की रंगबिरंगी शायरी

गुलजार खिले हो परियों के, और मंजिल की तैयारी हो

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लफ्जों की बरसात....

रात गए लफ्जों1 की बरसात हुई एक मुरस्सा2 नज्म हमारी जात हुई आंधी आई रस्ते में बरसात हुई अपनी मंजिल जैसे अपने साथ हुई छत के ऊपर सावन में भी धूप रही छत के नीचे आंखों से बरसात हुई

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उसके करम की बात न पूछो...

उसके करम1 की बात न पूछो वो सबके होले है इक दरवाजा बंद, अगर हो सौ दरवाजे खोले हैं उसकी वाणी लहरों में है, झरनों में हैं उसके बोल उसके ध्यान में डूबके देखो, कानों में रस घोले है

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