हयात हाशमी की ग़ज़लें
क्यों हमें मौत के पैग़ाम दिए जाते हैं, ये सज़ा कम तो नहीं है कि जिए जाते हैं...
View Articleराहत इन्दौरी
शे'र का लफ़्ज़ अगर शऊर से मश्क़ है तो राहत इन्दौरी की ग़ज़ल हक़ीक़ी मानों में शायरी कहलाने की मुस्तहक़ है। क्योंकि ये फ़िक्र और जज्बे की आमेज़श से इबारत है।
View Articleग़ज़लें-- शायर- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
बेसबब रूठ के जाने के लिए आए थे, आप तो हमको मनाने के लिए आए थे
View Articleअनवर शादानी की ग़ज़लें
इज़हार-ए-मोहब्बत पर कहने लगे झुंझलाकर दीवाने, मोहब्बत के आदाब तो सीखा कर
View Articleकमर गुनावी की ग़ज़लें
क़तरा क़तरा आँसुओं में रफ़्ता रफ़्ता बून्द बून्द, बेह गया आँखों से आखिर एक दरिया बून्द बून्द
View Articleअतीक़ अहमद अतीक़ की ग़ज़लें
ग़ज़ल का सदियों पुराना लिबास यूँ बदला, कि फ़िक्र-ओ-फ़न की मोहज़्ज़िब रिवायतें भी गईं
View Articleनिदा फ़ाज़ली की ग़ज़लें
धूप में निकलो घटाओं में नहाकर देखो, ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटाकर देखो
View Articleआसमान-ए-अदब का रोशन सितारा 'सरवर शहाब'
देखने में आया है कि कुछ लोग बहुत कम मेहनत किसी काम में करते हैं लेकिन नाम ज़्यादा कमा लेते हैं। कुछ लोग किसी काम में बहुत ज़्यादा महनत करते हैं, बहुत अच्छा काम करते हैं लेकिन फिर भी गुमनामी अंधेरे पे पड़े...
View Articleग़ज़ल : मुनव्वर राना
बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती है
View Articleअज़ीज़ अंसारी की ग़ज़लें
जिन दरख़्तों का ज़माने में कहीं साया नहीं , उनपे रेहमत का परिन्दा भी कभी आया नहीं
View Articleग़ज़ल : निदा फ़ाज़ली
छाँव में रख के ही पूजा करो ये मोम के बुत, धूप में अच्छे भले नक़्श बिगड़ जाते हैं
View Articleअबके हम बिछड़े तो शायद
अबके हम बिछड़े तो शायद, कभी ख्वाबों में मिलें जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
View Articleहुई है शाम तो आँखों में
हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू , कहाँ गया है मेरे शहर के मुसाफिर तू
View Articleग़ज़लें : मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
. हमसायों के अच्छे नहीं आसार खबरदार दीवार से कहने लगी दीवार खबरदार
View Articleग़ज़ल : मजरूह सुलतानपुरी
कब तक मलूँ जबीं से उस संग-ए-दर को मैं ऎ बेकसी संभाल, उठाता हूँ सर को मैं
View Articleग़ज़ल : कृष्ण बिहारी नूर
अपने होने का सुबूत और निशाँ छोड़ती है रास्ता कोई नदी यूँ ही कहाँ छोड़ती है
View Articleदानिश अलीगढ़ी की ग़ज़लें
क़दम क़दम पे ग़मों ने जिसे संभाला है उसे तुम्हारी नवाज़िश ने मार डाला है
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